Monday, June 29, 2009

The weak-end gone past

Yippy!!!!! Hurray!!!!!! After a horrendous run in with bollywood, (आ देखें ज़रा, तस्वीर, ....), I finally got a hat-trick of good movies and plays. First it was the rebellious गुलाल, then New york, and finally the play I was waiting to watch for a long time - Wedding Album.

गुलाल & देव-डी
छात्र राजनीति पर आधारित यह फ़िल्म मुझे अनुराग कश्यप की पिछली फ़िल्म देव-डी से कही बेहतर लगी। देव-डी एक stylized फ़िल्म थी जिसके पात्र more or less fixed थे। It could also be attributed to the fact की यह फ़िल्म एक चर्चित उपन्यास पर आधारित थी जिसके कारण characters को हद से हद एक अलग treatment दिया जा सकता था और जो की दिया भी गया पर उससे ज़्यादा कुछ नही। एक और बात देव-डी में थी की असल में ये एक Musical थी। अमित त्रिवेदी के अभूतपूर्व संगीत निर्देशन ने हर plot को एक परिभाषा दी। इस फ़िल्म में अभिनय से ज़्यादा महत्वपूर्ण इसका plot था। इसमे अगर किसी भी अभिनेता को fit किया जा सकता था बशर्ते की वो इस plot से बड़ा न लगे, और शायद यही कारण भी था की अपेक्षाकृत नए कलाकार इस मूवी में बखूबी जंचे। अभय देओल हालांकि अपनी पिछली फिल्मों में एक अलग पहचान बना चुके है, लेकिन उनकी understated स्टाइल ने देवदास के पात्र को एक नया आयाम दिया। चंदा के पात्र में Kalki ने अच्छी कोशिश की लेकिन कमज़ोर dialogues ने मज़ा किरकिरा कर दिया। माही गिल का screen presence काफ़ी अच्छा है और इस रोल के साथ उन्होंने पूरा न्याय भी किया। कुल मिला के देव-डी को एक path-breaking movie का खिताब दिया जा सकता है पर ये ज़रूर कहना है की जितनी Dark यह फ़िल्म इसके promos में लग रही थी, theatre में वो प्रभाव उतना उभर के नही आया।

खैर, हम बात कर रहे थे गुलाल की। इंतज़ार करे मेरी अगली post की.

3 comments:

Spiritual mommy said...

I find it tough to concentrate on a post written in Hindi :(
I feel ashamed to say this but i can blame it on being raised in different language zones of India.

I agree with you except that I love Gulaal and Dev D at the same level.. both are exceptional pieces that I can enjoy watching again and again :-)

Cos2BH K said...

Yep, reading Hindi has become tough for me as well, what a shame, but kya karein

Btw, I somehow feel like watching "Jashn", Shahana Goswami could pull the movie through, she was brilliantly natural in Rock On

Unknown said...

kya baat hai,manu.ek professional film crtic ki saari khubian to hain hi lekin approach aur presentation mei ek creative andaaz is review ko bahut khaas banaa deta hai.tumhari hindi mein badi safai aur tazagi hai.chhatra rajniti wali bat ka thoda vistar karte aur sath hi agar is bat par tippani karte ki director ne ise kia nazariye se prastut kiya hai to tumhari review mei purnata aa jati.ise vishal ko mail kyon nahi kar dete?